________________
१२० ]
लगा ।
द्विये ।
मदनपराजय
प्रचण्ड आग लग गयी । गधा और उल्लूका तीखा स्वर होने शूकर, खरगोश, छिपकली, नकुल और मृगाल भी दिखलाई
कुत्ता सामने आकर रोने लगा और कान फटफटाने लगा । दुष्ट पुरुष, खाली घड़ा और गिरगिट भी सामने दिखलायी दिये । असमय में वर्षा होने लगी । भूकम्प होने लगा । वज्र और उल्कापात होने लगा । -
कामदेवको यात्रा के समय यह सब घोर अपशकुन हुए जो एक सहृदय मित्रको भांति इस बातको व्यक्त कर रहे थे कि कामदेवको इस समय अपनी यात्रा श्रवश्य स्थगित कर देनी चाहिए ।
कामदेव ने इन अपशकुनोंको देखा और उसे अनुभव हुआ कि इस समय हमारा जाना श्रेयस्कर नहीं है । फिरभी वह लड़ाईके लिए निकल ही पड़ा ।
उस समय भय से दिशाएं चलित हो गई। समुद्र भी भत्यन्त व्याकुल हो उठा । पाताल में शेष नाग और मध्यलोकमें पर्वत कम्पायमान हो गये । पृथ्वी घूमने लगो और महान् विषधर विषवमन करने लगे ।
उस समय पवनके समान अनन्त घोड़ों और मदोन्मत्त हाथियोंसे सेनाकी शोभा द्विगुणित हो गयो । श्राकाश ध्वजाओं, चामरों और अस्त्रोंसे खचाखच भर गया । भौर नगाडे मृदङ्ग तथा भेरियोंकी ध्वनि तीनों लोकमें व्याप्त हो गयी ।
श्रर गगन मण्डल अश्वोंके पद रजसे सम्पूर्णतया आच्छन्न हो गया । छत्रोंसे समस्त मध्यभाग व्याप्त हो गया और पृथ्वी वीरोंसे आक्रान्त हो गई । रथोंकी चीत्कारसे कान इतने भर गये थे कि कोई शब्द भी सुनाई न पड़ता था। उस समय सेना में केवल वीरोंके भयंकर शब्द ही सुनायी पड़ रहे थे ।