Book Title: Madan Parajay
Author(s): Nagdev, Lalbahaddur Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 139
________________ १३८ ] मदनपराजय पृथ्वीपर या गिरा। मिथ्यात्व-धीरके धराशायी होते ही कामकी सेना पीछे हटने लगी। जिस प्रकार सूर्य के भयसे अन्धकार भागता है, गरुड़के भयसे साप भागते हैं और सिंहके गर्जनसे हाथी भागते हैं उसी प्रकार कामको सेना भी मिथ्यात्व-बीरके गिरते ही भागने लगी। इतने में प्राकाशमें स्थित इन्द्रने ब्रह्मासे कहा-पितामह, देखिए, सम्यक्त्वने कामकी सेनामें भगदड़ मचा दी है। और इस कारण जिनराजको सेनामें मानन्दमय जय-जयकार होने लगा है। जब कामने देखा कि उसकी सेना डरकर भाग रही है और शत्रुपक्षीय सेनामें जय-जयकार हो रहा है तो उसने मोहसे पूछामोह, शत्रुवर्गकी सेनामें यह क्या आनन्द-कोलाहल हो रहा है ? उत्तरमें मोह कहने लगा-स्वामिन् हमारे अग्रणी मिथ्यात्व-वीरको सम्यक्त्व-बीरने समराङ्गणमें पछाड़ दिया है। इसीलिए शत्रुपक्षीय सेनामें ग्रानन्दका कोलाहल छाया हुआ है। *११ एवं सयोर्यावरपरस्परं वदतोस्तावक रकानुपूर्वी व तसरं नरकतिस्थानमुद्दिश्य डुडोके । इसः सा नरकगतिरसिपत्रमध्ये वैतरियां जलक्रीडा कृत्वा सप्तमूमिका थवलगृहे यावदुपविष्टास्ति तावनरकानुपूर्वी संप्राप्ता । ततः सा नरकानुपूर्वी प्राह-हे सखि, तव भर्ता मिथ्यात्वनामा समराङ्गणे पतितः । तरिक सुखेनोपविष्टासि त्वम् ? एवं सखीवचनमात्रश्रवणात् प्रचण्डवाताहतकवलोदलबत् कम्पमाना भूत्वा भूतले पपात । ततस्तरक्षणाच्चेतना लाध्या सखी प्रत्यवोचत् हारो नारोपितः कण्ठे मया विरहभीररणा (भीतया)। इदानोमन्तरे जाता: सरित्सागरपर्वताः ।।५७।।

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