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भदनपराजय
उन्नतदक्षिणपक्षविभागा तत्क्षणमुखकृतपार्थिवशब्दा शान्तदिशा भगवत्यनुलोमा सेति जिनस्य जयाय गताऽग्रे
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दुर्गाकौशिक वाजिवाय सख रोलको शिवासारसाज्येष्ठा जम्बुकपोत घातक वृक्षागोवन्तिचक्रादयः । यस्यैते पुरतोऽनिशं च पथिकप्रस्थानवामस्थितास्तस्याग्र मनसः समीहितफलं कुर्वन्ति सिद्धि सदा। २३ ।
* २ इस प्रकार जब जिनराज प्रस्थानके लिए उद्यत हुए. उस समय निम्न प्रकारके शुभ शकुन होने लगे :
दही, दूर्वा अक्षतपात्र, जलपूर्ण कलश, इक्षुदण्ड, कमल, पुत्रवती स्त्री और वोणा श्रादिके दर्शन हुए ।
साथ ही दक्षिण भागमें कुमारी और वामभाग में मेघों की, मयूरोंकी और बैलोकी गर्जनाएँ होने लगीं ।
इसके अतिरिक्त दक्षिण भाग में राजाओं की 'मारो-पकड़ो की ' भी ध्वनि होने लगी । और जिस दिशा में जिनराजका प्रस्थान होना या वह बिलकुल शान्त हो गयी । शकुनविदों का कहना है
दुर्गा, उल्लू, घोड़ा, कौवा, गधा, उलूको, सियारनी, सारस, । वृद्धा, जम्बुक पोत, चातक, भेड़िया और गायका दाँत जिसके प्रस्थानके समय बायें भागमें श्रावें उसका मनोरथ सदैव सिद्ध समझना चाहिए ।
* ३ एवं निर्गच्छन्सं जिनमवलोक्य संज्वलनेनं हृवि चिन्तितम् - प्रहोऽधुनाऽस्माकमत्रावासो युक्तो न भवति । एवमुक्रवा मदनसकाशमागत्य प्रणम्य विज्ञापयामास - 'वेव देव,