SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ I १०८ ] भदनपराजय उन्नतदक्षिणपक्षविभागा तत्क्षणमुखकृतपार्थिवशब्दा शान्तदिशा भगवत्यनुलोमा सेति जिनस्य जयाय गताऽग्रे ५२३॥ दुर्गाकौशिक वाजिवाय सख रोलको शिवासारसाज्येष्ठा जम्बुकपोत घातक वृक्षागोवन्तिचक्रादयः । यस्यैते पुरतोऽनिशं च पथिकप्रस्थानवामस्थितास्तस्याग्र मनसः समीहितफलं कुर्वन्ति सिद्धि सदा। २३ । * २ इस प्रकार जब जिनराज प्रस्थानके लिए उद्यत हुए. उस समय निम्न प्रकारके शुभ शकुन होने लगे : दही, दूर्वा अक्षतपात्र, जलपूर्ण कलश, इक्षुदण्ड, कमल, पुत्रवती स्त्री और वोणा श्रादिके दर्शन हुए । साथ ही दक्षिण भागमें कुमारी और वामभाग में मेघों की, मयूरोंकी और बैलोकी गर्जनाएँ होने लगीं । इसके अतिरिक्त दक्षिण भाग में राजाओं की 'मारो-पकड़ो की ' भी ध्वनि होने लगी । और जिस दिशा में जिनराजका प्रस्थान होना या वह बिलकुल शान्त हो गयी । शकुनविदों का कहना है दुर्गा, उल्लू, घोड़ा, कौवा, गधा, उलूको, सियारनी, सारस, । वृद्धा, जम्बुक पोत, चातक, भेड़िया और गायका दाँत जिसके प्रस्थानके समय बायें भागमें श्रावें उसका मनोरथ सदैव सिद्ध समझना चाहिए । * ३ एवं निर्गच्छन्सं जिनमवलोक्य संज्वलनेनं हृवि चिन्तितम् - प्रहोऽधुनाऽस्माकमत्रावासो युक्तो न भवति । एवमुक्रवा मदनसकाशमागत्य प्रणम्य विज्ञापयामास - 'वेव देव,
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy