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चतुर्थ परिच्छेद
[ १११ पोर न यह भात ही सुनने तमा देखने में प्रायी है कि गरुड़के ऊपर साँप, कुत्तोंके ऊपर खरगोश, कालके ऊपर प्राणी और बाजके ऊपर कौवे विक्रमण कर रहे हैं। __ यह कहकर कामने मोहको बुलाया और उससे कहने लगा-- मोह, मैंने यह निश्चय किया है कि आज समरभूमिमें उतरनेपर यदि सुज निजय नहीं मिलती है तो मानने वाले लो सागरके बड़वानल में दग्ध कर डालूगा।
कामको प्रतिज्ञा सुनकर मोह कहने लगा- देव, माप बिलकुल सत्य कह रहे हैं । प्राबके संग्राममें विजय आपको ही संगिनी बनेगी। ऐसा कौन बलवत्तर देव है जो आपको पराजित कर सके और विजयी होकर अपने घर लौट सकें। इस प्रकारका देव न मैंने सुना है और न हो देखा है । क्योंकि
"हरि, हर और ब्रह्मा प्रादि प्रबल देवोंको भी आपने इस तरहसे परास्त कर दिया है कि वे निलंज्ज होकर आज भी अपनी अङ्घको नारो-शुन्य नहीं कर रहे हैं।"
मोह कामसे कहने लगा-देव, इस प्रकार एक तो जिनराजका इतना साहस ही नहीं कि वह आपका सामना करनेके लिए समराङ्गणमें आ सके । यदि कदाचित् आया भी तो यह निश्चय है कि वह आपका कुछ भी बिगाड़ न कर सकेगा । उसे पकड़कर वेड़ियाँ पहिना दी जावेंगो और वह अविचार-कारागारमें डाल दिया जायेगा।
____ मोहकी बात सुनकर कामने बन्दी बहिरात्माको बुलाकर कहा- अरे, बहिरात्मन् यदि तुम आज मुझे जिनराजका साक्षात्कार करा दो तो मैं तुम्हारा बहुत संमान करूंगा। इस प्रकार कहकर कामने अपने नाम से प्रति एक कटि-सूत्र बन्दीके हाथ में दिया और उसे शीघ्र ही जिनराजके पास भेज दिया।