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चतुर्थ परिछेद
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महारथ के कोलाहलने समुद्रके गर्जनको भी अभिभूत कर दिया । पाँच समिति, पाँच महाव्रतोंके संदेश और स्वाद्वाद - भेरीके शदने दि मण्डलको वधिर कर दिया । गगनचुम्बी शुभ लेश्यारूपी विशाल दण्डोंसे अनङ्गकी सेनाको भी भय होने लगा। विकसित लब्धिरूपी पताकाश्रों की छायासे दिक्चक्र भी याच्छन्न हो गया । और विविव व्रतरूपी स्तंभोंसे सेनाकी शोभा और अधिक निखर पाई
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इस तरह चतुरङ्ग सेनाके साथ क्षायिकदर्शनरूपी हाथीपर सवार होकर अनुप्रास लवन पहन कर भालपुर आगमरूपी मुकुट धारण कर, हाथ में महासमाधि शस्त्रको लेकर और सिद्धस्वरूप-रूपी स्वर-शास्त्र के तत्वज्ञको साथमें लेकर जिनराज कामके ऊपर चढ़ाई करनेके लिए जैसे ही तैयार हुए, अनेक भव्य जीव उनका अभिवादन करने लगे । शारदा सामने आकर मङ्गल गान करने लगी । दया ग्राभरण पहनाने लगी और निम्ब और नमक लेकर पांच मिध्यात्वरूपी नजर उतारने लगी ।
* २ एवंविधस्य समरभूमिसंचलितस्य जिनेशस्याग्रे सुशकुनानि जशिरे । तद्यथा
दधिदुर्व्वाक्षतपात्रं जलकुम्भश्चेवण्डपद्मानि । सूनुमती स्त्री वीणाप्रभूतिकमग्रे सुदर्शनं जातम् ||२०||
सचथा
प्रदक्षिणेन प्रतिवेष्टयन्ती यतो (तः ) कुमारी सफलार्थसिद्धये । आमाङ्गभागे ध्वनिरम्बुवानां जातास्त्रिसीनाञ्च तथा वृषाणाम् ।।२१।।
( जातो बुषाणां शिखिनां तथा च ॥ )