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द्वितीय परिच्छेद
[ ८३ और इन्द्र जिसकी पूजा करते हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु महेश्वर और अन्य राजा प्रादि भी जिसकी सम्माननामें व्यस्त रहते हैं। ___इतना ही नहीं, आप उसके साथ मित्रता स्थापित कर लें। उसके साथ शत्रुता का भाव तो आपको कदापि न रखना चाहिए। कारण, काम महान् बलवान् है। कदाचित् वह तुमसे रुष्ट हो गया तो पता नहीं क्या कर डालेगा?
और कामके ऋद्ध हो जानेपर आप पातालमें प्रवेश करें, सुरेन्द्रलोक में जावें, नगाधिपत्ति सुमेरुपर चढ़े और मन्त्र, प्रौषधि तथा आयुधोंसे भी अपनो रक्षा करें. पर आप अपनो रक्षा नहीं कर सकेंगे प्रौर काम निश्चयसे तुम्हारे ऊपर प्रहार करेगा।" और
___ "यह काम ही एक इस प्रकारका वीर और अचिन्त्य पराक्रमी है, जिसने जगत्को अनायास ही अपने पैरोंसे रौंद डाला है । तथा इसने बिना किसी बाधाके अकेले ही अपनी शक्तिसे चराचर संसारको छिन्न करके अपने अधीन कर लिया है ।" अथ च
"केवल यह एक काम ही है जो निःशङ्ग होकर तीनों लोकको पीड़ित करता है और भूलोक में सैकड़ों उपाय करनेपर भी जिसका कोई विनाश नहीं कर सका है ।" तथा
"एक बालोचकको दृष्टिमें तो यह काम कालकूट से भी अधिक महत विष है। उनका कहना है कि इन दोनोंमेंसे कालकूटका तो प्रतीकार भी हो सकता है लेकिन द्वितीय काम-विषका कोई प्रतीकार नहीं है।
पिशाच, साप, रोग, दैत्य, ग्रह और राक्षस संसार में इतनी पोड़ा नहीं पहुंचाते, जितनी यह मदनम्वर पहुंचाता है।
जिन देहधारियोंका मन कामके बाणोंसे भिदा हुआ है वह स्वप्नमें भी स्वस्थ नहीं रह सकता ।