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मदनपराजय राग-द्वेष कहने लगे-महाराज शल्यधीर, पराभव सहन करनेका एक कारण है। वह यह कि जो महामना होते हैं वे अपनेसे छोटोंको सताते नहीं हैं। कहा भी है:
___ 'वायु सब प्रकारसे प्रगत और मृदुल तृरणोंको नहीं उखाड़ती, बल्कि वह उन्नत वृक्षोंको ही बाधा पहुँचाती है। ठीक है, महान महान् पुरुषोंके साथ ही विग्रह करते हैं ।" तपा
"शक्तिशाली हाथी अपने मद-जलसे परिपूर्ण गंडस्थलपर सुगन्ध-लोलुप भौंरोंके पाद-प्रहारसे पीड़ित होनेपर भी क्रोध नहीं करता है । ठीक है, बलवान् स्वल्पबलशाली पर कदापि क्रोध नहीं करते ।"
२ एव शुस्वा मदनो घृतसिक्तानलवत् कोपं गत्वा अन्यायकालिकं प्रत्यायोत्-रे अन्यायकालिक, शीघ्र काहलया निनादं कुरु यथा सैन्यप्तमूहो भवति । एतवाकर्य तेनानीसिकाहला गम्भीररवेण नाविता ।
अथ तच्छावणाग्जिनेन्द्रोपरि बलानि सम्रद्धानि जज्ञिरे । तद्यथा
प्रापुः त्रिगुणा महासरसरा दोषास्त्रयो गारवा आजग्मुर्घसमाभिधानसुभटाः पंचेन्द्रियाख्यास्ततः । बीरा वैरकुलांतका वरभटा दण्डास्त्रयश्चागताः प्राप्ताः सल्यसमास्त्रयोऽङ्क तबलाःशल्याभिधाना नृपाः
॥१॥ प्रायुष्कर्मतराधिपाश्च चतुराः प्राप्तास्तु पंचायवा रागढषभटौ ततोऽनु (मि) मिलतुदंपोंढतौ सिंहवत् । सम्प्राप्तावतिगवितौ स्मरदले गोत्राभिधानी नृपावज्ञानाख्यनुपास्त्रयोऽथ मिलिताः प्राप्तस्ततश्चानयः।२।