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मनपराजय
अन्य छज
"खद्योतानां प्रभा ताव यावन्नो रविरश्मयः । द्विजिह्वानां बलं तावद् यावन्नो विनतासुतः ।।७।। "
*३ मिध्यात्वने आते हो कामदेवसे कहा- हे देवतारूपी मृगोंके लिए सिंह-सहा देव, श्राप इतनी बड़ी सेनाके साथ क्यों प्रस्थान कर रहे हैं ? मुझे आज्ञा दीजिए। मैं अकेला ही जिनेन्द्रको पराजित करके बाता हूँ 1
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इस बीच में मोह कहने लगा- अरे मिथ्यात्ब, तुम क्या बात करते हो ? संसार में ऐसा कोनक्ति है जो संग्राम में जिनेन्द्रका सामना कर सके । तुम्हारी शूरवीरताका कल सवेरे ही पता चल जायगा जब जिनेन्द्रका सेनापति रणाङ्गण में आकर उपस्थित होगा । कहा भी है:
"मेंढक कुएं में तभी तक निर्भय होकर गरजता है, जब तक उसे भयङ्कर करणधारी सांप नहीं दिखलायी देता । चिकने नीलाद्विको तरह काले हाथी तभी तक विधाड़ते हैं, जबतक वे अपने कान से रोषमरे सिंहकी गर्जना नहीं सुनते । साँपके विषका उत्कट प्रभाव भी नभीतक रहता है, जबतक गरुड़के दर्शन नहीं होते । और अन्धकार भी तक रहता है, जबतक सूर्य उदित नहीं होता ।"
कविने इस आशय की एक और बात कहीं है । वह यह है
"जबतक सूर्यका तेज प्रकट नहीं होता तभी तक खद्योत चमकते हैं । इसी तरह साँप भो तभीतक अपने में शक्तिका अनुभव करता है, जबतक उसे गरुढ़का साक्षात्कार नहीं होता ।"
मोह कहने लगा --- इसलिए भाई, तुम व्यर्थ बात न करो । कल तुम्हें अपने श्राप अपनी शक्तिका पता चल जावेगा ।