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मदनपराजय
इसके पश्चात् रतिने कहा- मोह, तुम यह बताओ कि मैं इस समय क्या करू ? यदि मैं लोटकर तुम्हारे साथ चलूँ तो प्राणनाथ मुझे देखकर बहुत नाराज होंगे । इसलिए तुम चलो। मेरा लौटना अब ठीक नहीं है ।
मोहने कहा- देवि, यह न होगा । आप अवश्य ही मेरे साथ लौट चलिए । रतिने कहा- मोह, भाप मुझे प्राणनाथ के पास ले जाकर क्या कहेंगे ?
मोहने कहा- देवि, इस सम्बन्ध में आप क्यों चिन्ता करती हैं ? "जिस प्रकार अच्छी वर्षाके समय बोये गये बीजसे मौर बीज पैदा होता है, उसी प्रकार प्रश्नकर्ता के उत्तर से वार्तालापकी परम्परा चल पड़ती है।"
इस प्रकार मोह रसिको साथमें लेकर कामके निकट जा पहुंचा ।
इस तरह ठक्कुर माइन्ददेव द्वारा प्रशंसित जिन (नाम ) - देव-विरचित संस्कृतबद्ध स्मरपराजय में श्रुतावस्था नामक प्रथम परिच्छेद सम्पूर्ण हुआ ।
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