SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ ] मदनपराजय इसके पश्चात् रतिने कहा- मोह, तुम यह बताओ कि मैं इस समय क्या करू ? यदि मैं लोटकर तुम्हारे साथ चलूँ तो प्राणनाथ मुझे देखकर बहुत नाराज होंगे । इसलिए तुम चलो। मेरा लौटना अब ठीक नहीं है । मोहने कहा- देवि, यह न होगा । आप अवश्य ही मेरे साथ लौट चलिए । रतिने कहा- मोह, भाप मुझे प्राणनाथ के पास ले जाकर क्या कहेंगे ? मोहने कहा- देवि, इस सम्बन्ध में आप क्यों चिन्ता करती हैं ? "जिस प्रकार अच्छी वर्षाके समय बोये गये बीजसे मौर बीज पैदा होता है, उसी प्रकार प्रश्नकर्ता के उत्तर से वार्तालापकी परम्परा चल पड़ती है।" इस प्रकार मोह रसिको साथमें लेकर कामके निकट जा पहुंचा । इस तरह ठक्कुर माइन्ददेव द्वारा प्रशंसित जिन (नाम ) - देव-विरचित संस्कृतबद्ध स्मरपराजय में श्रुतावस्था नामक प्रथम परिच्छेद सम्पूर्ण हुआ । --3q-----
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy