Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University

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Page 14
________________ केकिलिउस की इस कृति पर लौंजाइनस ने पहले भी कभी तेरेन्तियानुस के साथ विचार-विमर्श किया था, उसी को विशद् रूप देते हुए, लिपिबद्ध करते हुए और केकेलिउस की त्रुटियों का यथासंभव निराकरण करते हुए लौंजाइनस ने यह रचना की। 'पेरिहुप्सुस' लगभग 60 पृष्ठों की लघुकाय कृति है, जिसमे छोटे बड़े (44) अध्याय हैं। अध्यायों का आकार बहुत ही असमान है। कुल अध्याय दो-तीन पृष्ठों के हैं तो कुछ केवल सात-आठ पंक्तियों के । इसका कारण यह भी है कि कई अध्यायों के अंश खण्डित हैं। पूरी पुस्तक का प्रायः एक तिहाई भाग लुप्त है। मनुष्यों की तरह कृतियों के भी भाग्य सोते-जागते रहते हैं। इसके अगणित उदाहरणों में 'पेरिहुप्सुस' भी है। काव्य-शास्त्रीय इतिहास का निश्चय ही यह बहुत बड़ा सौभाग्य है कि 'पेरिहुप्सुस' जैसी महत्वपूर्ण कृति खण्डित रूप में ही सही प्रकाश में आयी। विद्वानों ने एक स्वर में इस कृति और कृतिकार की प्रशंसा की है। अध्यायानुसार 'पेरिहुप्सुस' की विषय-सूची इस-प्रकार है:(1) अध्याय (1) से 7 : भूमिका-ग्रन्थ का प्रयोजन, उदात्त की परिभाषा, कतिपय दोषों का विवेचन आदि। (2) अध्याय 8 से 15: उदात्त के पॉच स्रोतों का निर्देशः उनके विचार की गरिमा तथा भाव की प्रबलता का निरूपण। (3) अध्याय 16 से 29: अलंकारों का निरूपण। (4) अध्याय 30 से 38: शब्द, रूपक, बिम्ब आदि का निरूपण। (5) अध्याय 39 से 40: रचना की भव्यता का निरूपण । (6) अध्याय 41 से 43: दृष्टिभेद में उदात्त विरोधी कुछ अन्य दोषों की चर्चा । (7) अध्याय 44: उपसंहार-यूनान के नैतिक- साहित्यिक हास के कारणों का संधान ।

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