Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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'उदात्त का स्वरूप उदात्त शब्द 'दा' धातु से 'उत्' एवं 'आ' उपसर्ग तथा 'त्त' प्रत्यय के योग से बना है। 'दा' दाने अर्थात 'दा' धातु दान अथवा देने के अर्थ में प्रयुक्त होती हैं। 'उत्' उपसर्ग का अर्थ ऊपर की ओर जाना या ऊपर की ओर उठना है 'आ' उपसर्ग 'चारो ओर से' या समुच्चय रूप से के अर्थ में प्रयुक्त होती है। 'त्त' प्रत्यय 'भाव' या 'होने' अर्थ में है। अर्थात् उदात्त का व्युत्पत्ति जनित अर्थ हुआ-ऐसा दान (देने वाला) जो समुच्चय रूप से ऊपर की ओर उठाता है। या सभी ओर से उत्कर्षण करता है।'
कोष ग्रन्थों के अनुसार 'उदात्त' का सामान्य अर्थ दयालु, त्यागी, दाता हृदय को स्पर्श करने वाला, उदार उत्तम, श्रेष्ठ, सशक्त एवं समर्थ आदि है। करुना, निधान एवं अनुग्रही आदि भी इसके पर्याय है। उदात्त का अंग्रेजी पर्याय 'सब्लाइम' है जिसका अर्थ है(क)क मानवीय क्रिया-कलाप एवं चिन्तन आदि के श्रेण्ठतम् क्षेत्रों से सम्बद्ध
विचार सत्य एवं विषय । (ख) व्यक्ति ऐसा हो जो अपने स्वभाव, चरित्र, उच्च कुल, प्रजा एवं आध्यात्मिक
वैशिष्ट्य के दूसरों से बहुत ऊँचे स्थित हों। (ग) प्रकृति एवं कला के क्षेत्र की ऐसी वस्तुएं जो अपनी महत्ता अबाध शक्ति
एवं व्यापक आदि के कारण मन को अविभूत करती हो एवं संभ्रम करती
1. डॉ० प्रेम सागर के मतानुसार, 'उदात्त भावना' एक विश्लेषण पृष्ठ-(1) 2. वृहत् पर्यायवाची कोष, पृष्ठ ज- (22)। क. मानक हिन्दी कोश, पहला खण्ड – पृष्ठ - 345 ख. वाचस्पत्यम् द्वितीय भाग – पृष्ठ - 1151-62 ग. शब्द-कत्यद्रुम, प्रथम भाग पृष्ट 237|