Book Title: Leshya kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 11
________________ आशीर्वचन अहम् कोश निर्माण की प्रक्रिया लम्बे समय से चल रही है। मोहनलालजी वांठिया ने इस कार्य का प्रारम्भ किया और श्रीचन्द चोरडिया उसमें सहायक रहा। मोहनलालजी अब नहीं रहे फिर भी श्रीचन्द उस कार्य को अग्रसर कर रहा है । लेश्या जैन दर्शन का विशिष्ट शब्द है। कोशकार ने उसकी व्युत्पत्ति में अनेक धातुओं से उसका सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। आचार्य तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में हमने जो आगम सम्पादन किया और कर रहे हैं, उसका उपयोग करना शायद कोशकार को अभीष्ट नहीं रहा। प्राचीन व्याख्याओं के साथ शोधपूर्ण आधुनिक व्याख्याओं का समावेश किया जाए तो अधिक प्रामाणिक अर्थ खोजा जा सकता है । यदि इसमें नन्दी और उसकी चूणि का उपयोग किया जाता तो लेश्या शब्द की यथार्थ जानकारी हो जाती । प्रस्तुत ग्रन्थ लेश्या कोश का दूसरा खण्ड है। यह सामान्य पाठक के लिए बहुत उपयोगी नहीं है, किन्तु शोध करने वालों के लिए बहुत उपयोगी है। पुनरावृत्ति पर विचार किया जाए तो इसका कलेवर छोटा हो सकता है, अध्येता के लिए सुविधा हो सकती है। जो बहुत वर्षो से जिस रूप में चल रहा है उसी रूप में अटकना नहीं है । इस विषय में नये चिन्तन और नये दृष्टिकोण का विकास होना जरूरी है । इससे उपयोगिता और बढ़ जायेगी। श्रीडूंगरगढ़ -आचार्य महाप्रज्ञ ८ मई २००१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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