Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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2000 Rae
एक अन्य महान नारी का उदाहरण बाईसवें उठा । वह अपने आप पर नियन्त्रण नहीं रख पाया तीर्थकर भगवान अरिष्टनेमि के समय का मिलता पाया और उसने राजीमती से कामयाचना की। है. जो न केवल अपने भावी पति के पद चिह्नों जैसे ही राजीमती ने रथनेमि का स्वर सना तो वह पर चल पड़ी थी, वरन् उसने अपने देवर को भी स्तब्ध रह गई। एक बार तो वह भय से कांप प्रतिबोध देकर सन्मार्ग पर लगाया था।
उठी । किन्तु तभी उसने साहस जुटाया और अपने ____ अरिष्टनेमि का राजीमती से विवाह होने वाला
आपको सँभालते हुए रथनेमि की सम्बोधित करते
हुए कहा-"रथनेमि ! तुम तो साधारण पुरुष हो, था। राजीमती भोजकूल के राजा उग्रसेन की कन्या थी। बारात महल की ओर जा रही थी। तभी
यदि साक्षात् रूप से वैश्रमण देव और सुन्दरता में
नलकूबर तथा साक्षात इन्द्र भी आ जाये तो भी मैं मार्ग में पशुओं के करुण-क्रन्दन की चीत्कार अरिष्टनेमि ने सनी और उन्होंने इसकी जानकारी ली।
उन्हें नहीं चाहूँगी क्योंकि मैं कुलवती हूँ। नाग
जाति के अंगधन सर्प होते हैं। जो जलती हुई उन्हें बताया गया कि बारात के भोजन के लिए जिन पशुओं का वध किया जावेगा उन्हीं पशुओं
। आग में गिरना स्वीकार करते हैं। किन्तु वमन का यह क्रन्दन है। यह सुनते ही अरिष्टनेमि का
किये हुए विष को कभी वापस नहीं लेते। फिर
तुम तो उत्तम कुल के मानव हो, क्या त्यागे हए हृदय करुणा से आप्लावित हो उठा और उन्होंने आगे न बढ़ते हुए पोछे लौट चलने का आदेश
_ विषयों को फिर से ग्रहण करोगे ? तुम्हें इस विपदिया। संयम व्रत अंगीकार कर तीर्थंकर पद प्राप्त
रीत मार्ग पर चलते हुए लज्जा नहीं आती ? रथकिया ।
नेमि ! तुम्हें धिक्कार है। इस प्रकार अंगीकृत व्रत
से गिरने की अपेक्षा तुम्हारा मरण श्रेष्ठ है। इधर जब अरिष्टनेमि के लौट जाने के समा
राजीमती की इस हितकारी फटकार को सुन चार राजमती को मिलते हैं तब वह पहले विलाप करती है. उसकी आँखों से अश्रुओं की अविरल
कर रथनेमि पर प्रभाव हुआ और उसका विचलित धाराएँ छूटती हैं। उसका यह विलाप करुण रस
मन पुनः धर्म में स्थिर हो गया। का एक ज्वलन्त उदाहरण है। और उसके पश्चात्
यह दृष्टान्त नारी की संयम के प्रति दृढ़ वह भ० अरिष्टनेमि के पदचिन्हों पर चलने की
भावना को प्रकट करता है। साथ ही यह भी स्पष्ट घोषणा कर संयम व्रत अंगीकार कर लेती है। यह करता है कि नारी पथ से भटके हए राही को | तो उसके उच्च आदर्श को प्रकट करता है। इससे सन्मार्ग पर लाना भी जानती है। भी उच्च स्थिति उस समय आती है, जब वह भगवान् महावीर के युग पर दृष्टिपात करने साध्वी वेश में ग्राम-ग्राम विचरण करती है। ऐसे से हमें महान सन्नारियों के दर्शन होते हैं । व्याख्या ही विचरण काल में एक बार वर्षा से भीग जाती प्रज्ञप्ति में कौशाम्बी के राजा की पुत्री जयन्ती का है। समीप ही उसे एक गुफा दिखाई देती है। विवरण उपलब्ध होता है। जयन्ती एक धर्मनिष्ठ राजीमती उस गुफा में जाकर अपने वस्त्र उतार नारी थी। जयन्ती कर सुखाने लगती है । उसी गुफा में अरिष्टनेमि का महावीर का समाधान यह बताता है कि जयन्ती अनज रथनेमि संयम व्रत अंगीकार कर साधनारत __ को गहरातात्विक ज्ञान था । कालान्तर में जयंती था । राजीमती इस तथ्य से अनभिज्ञ थी कि गुफा में दीक्षा ग्रहण कर सिद्ध बुद्ध मुक्त हुई। रथनेमि साधनारत है । रथनेमि ने निरावृत सौन्दर्य इसी प्रकार स्थानांग सूत्र में भगवान् महावीर सम्पन्न नारी देह को देखा तो वह विचलित हो की अनन्य उपासिका सुलसा का विवरण मिलता है।
HEOS .0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ १ . y For Private a Personal use only
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