Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
View full book text
________________
( १३ ) लिये जायेंगे, जिन्होंने उक्त पवित्र आध्यात्मिक- प्रदान करने का माध्यम बन गये हैं 'अभिनन्दन
सन्दर्भो को 'अर्थ' और 'काम' की प्राप्ति, पूर्ति एवं समारोह'; और इन प्रशस्तियों की अमिटता का । तृप्ति का माध्यम मान लिया है।
अहसास यावज्जीवन कराते रहने के निमित्त भेंट • तब फिर उदार, दयालु, दानी, परोपकारी किये जाने लगे हैं 'अभिनन्दन-ग्रन्थ' । लोक-व्यवहार आदि वर्गों के व्यक्ति अभिनन्दन के पात्र माने की इस 'गतानुगतिकता' ने एक ओर तो इसे जायें ?
एक परम्परा/रूढ़ि का स्वरूप प्रदान कर • उक्त शब्द-समूह, सामयिक सामाजिक- दिया है, तो दूसरी ओर, अभिनन्दन-प्रकिया सन्दर्भो में अपनी गुणात्मक-पहिचान खो चुके हैं ! के 'लक्ष्यभूत' एवं 'माध्यमभूत' दोनों ही वर्गों को और स्वार्थी, शोषक, वञ्चक, अहंकारी आदि 'यश' और 'श्री' के अर्जन का समवेत-साधन भी स्वरूपों के पर्याय बन गये हैं।
बना दिया है। अतएव, 'अभिनन्दन' और 'अभि• तो क्या अभिनन्दन 'अर्थहीन' है ? नन्दन-ग्रन्थ' से जुड़ा समग्र कार्य-व्यवहार 'मूल्य
• जो शब्द, अपनी गुणात्मकता खो देते हैं, परक' न रहकर 'व्यक्तिपरक' व 'अर्थपरक' बन फिर भी लोक व्यवहार में प्रचलित बने रहते हैं, वे जाता है। शब्द, एक नयी पहिचान के अर्थ में 'रूढ' बन जाते . प्रसंगगत अभिनन्दन-सन्दर्भ में इन/ऐसी हैं । पूर्वोक्त चिन्तनों के परिप्रेक्ष्य में 'अभिनन्दन' चिन्तन दृष्टियों की 'अर्थवत्ता' और 'सुकरता' की । शब्द भी ऐसा ही जान पड़ता है।
मानसिकता पर दृष्टिपात करने से परे होकर, .तब क्यों आयोजित किये जाते हैं 'अभि- सहज सरल-मना, विदुषी जैनसाध्वी श्री कुसुमवती नन्दन-समारोह' ? और, क्यों छपाये जाते हैं 'अभि- जी की वैराग्य-साधना की सुदीर्घता के प्रतीक नन्दन-ग्रन्थ' ?
पावन-प्रसंग पर, उन्हें मैं अपनी श्रद्धा-सुमनाञ्ज• वर्तमान सामाजिक-परिवेष में 'गुणात्मक- लियाँ समर्पित करता हूँ, और यह मंगलकामना प्रतिद्वन्द्विता' का स्थान 'प्रतिद्वन्द्वात्मक-असहिष्णुता' करता हूँ कि वे, अपने आध्यात्मिक-उत्कर्ष की दिशा F ने ले लिया है। सार्वजनिक-स्तर पर सामूहिक- में सतत् प्रगतिशील बनी रहें।
प्रशस्ति गान कराकर कुण्ठित-अहं को सन्तुष्टि
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org