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३. पं० धर्मदास
कविवर बूचराज
पं० धर्मदास उन
कवियों में से हैं जिनके हिन्दी जैन साहित्य के
।
साहित्य और जीवन से हिन्दी जगत अपरिचित सा है इतिहास में भी इनका केवल नामोल्लेख ही हुआ है । धर्मदास का जन्म कब और कहां हुआ था इसका उल्लेख न तो स्वयं कवि ने ही अपनी रचना में किया है और न मन्यत्र ही मिलता है । लेकिन संवत् १५७८ वैशाख सुदि ३ बुधवार के दिन इन्होंने 'धर्मोपदेशश्रावकाचार' को समाप्त किया था । इस प्राधार पर इनके जन्म काल का धनुमान किया जा सकता है । कवि की अभी तक एक ही रचना मिल सकी है। अतः यह सम्भव है कि उन्होंने यही एक रचना लिखी हो ।
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धर्मदास ने सम्पन्न घराने में जन्म लिया था। इनके वंशज दानी परोपकारी तथा दयावान थे । ये 'साहु' कहलाते थे । साहु शब्द प्राचीन काल में प्रतिष्ठित पोर धनाढ्य पुरुषों के लिए प्रयोग हुआ है तथा जो साहूकारी का कार्य करते थे वे भी साहू कहलाते थे । कवि के पिता का नाम रामदास और माता का नाम शिव था 1 इनके पितामह का नाम 'पदम' था । ये विद्वान् तथा चतुर पुरुष समझे जाते थे । सज्जनता इसमें फूट-कूट हुई। स्वयं मनों को परोपकारी बनाया था 1 देश-देश के बहुत से मित्र इनसे सभी प्रकारके कार्यों के लिए सलाह लिया करते थे। ये कवियों धौर विद्वानों को खूब सम्मान देते थे । कवि की वंशावली इस प्रकार है:
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समरीन सामिरिण सारखा सामिरिण संभार । worg परलउ प्रतिपय कविताएं काय ॥
अन्त भाग - गोल प्रबन्ध जे सांभलिए ए म्हाः ते नर नारि बनषस्व सु । सुदर्शन रिषि कक्लोए म्हा: चजविह संघ सूप्रसन्न ||२५||
पन्द्रह अट्ठहत्तर बरिसु संवर कुसल कन सरमु । निर्मल वैशाली खोज बुधवार गुनियहु जानीज ||
जिन पथ भत्तच होरिल साहू. सो जु वान पूज की पवाहू । तामु तु मनु सत्य जस गेहू. धर्मशील यंत जानेहू । तासु पुत्र जेठो करमसी, जिनमति सुमति जासु मन वसी 1 या श्रावि वे धर्म हि लीम, परम विवेकी पाप विहोम |
क्रमशः