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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
१. विमल मूति
विमल मूत्ति कृत पुण्यसार रास सवत् १५७१ की रचना है ।। इसे कवि ने धूंधक नगर में समाप्त किया था । विमलमूत्ति मागमगच्छ के हेमरत्न सूरि के शिष्य थे । रास का प्रादि अन्त भाग निम्न प्रकार हैप्रादि
केवल ज्ञान अलंकारी सेवइ अमर नरेस सयल जनु हितकारी जिणवाणी पमसोस हेमसूरि गुरु बुझिबिउ कुमारपाल भूपाल जेह समु जगि को नहीं जीव दया प्रतिपाल
प्रन्त
तसु सानिध्य ए अवकास
सांभलता हुइ पुण्य प्रकास ॥३॥ २. मेलिग
मेलिग कवि १६ वीं शताब्दी के मन्तिम चरण के कवि थे। वे तपागच्छ के मुनि सुन्दरसूति के शिष्य थे। उन्ही की आशा से उन्होंने प्रस्तुत रास की रचना की थी । संवत् १५७१ में इन्होंने 'सुदर्शन रास' की रचना प्रपने गृह की प्राज्ञा से समात की थी । सुदर्शन 'रास की एक प्रति पाटण के जन भण्डार में तथा एक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में सुरक्षित है।
--- १. संवत् पनर एकोतरइ पोस बवि इग्यारसि अंतरइ । धूपका पुरि पास समष्य, सोमवार रचिज अवष्य ॥८॥
हिन्दी रासो काम्य परम्परा, पृष्ठ सं० १६१ । आगम गछ प्रकास विव श्री हेमरत्न गुरु सूरि गुरगमन्द ।।१।।
हिन्दी रासो कास्य परम्परा पृष्ठ सं० १६१ ३. संवत पनर एकोतरइ एम्हा, जेठह चउथि विशुख-सुरिण ।
पुष्प मात्र गुरु धारिसे ए. म्हा परित्र ए पुहषि प्रसिद्ध सुरिंग ।।२२२॥ ३. मादि भाग -पहिलर' प्रणमिसु पनुक्रमिदए जिणवर पुरोस ।
पछा शासीन देवताए सहि नामु सीस ।
क्रमशः