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यदि रमणीयता ही कवित्व का लक्षण है, तो सत्यनारायणजी मूतिमान् कवित्व के अवतार थे। उनका बोलना-चालना, हँसना, सब कवितामय था। उनका कोई कार्य कविता से खाली नही था । ब्रजभाषा की कविता का तो कम से कम अभी कुछ दिन के लिए जब तक कोई दूसरा वैसा कवि पैदा न हो-उनसे अन्त हो गया। उनको "ब्रज-कोकिल" कहना सदैव शोभा देगा।
इस ब्रजकोकिल का यह सुन्दर चरित्र हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की ओर से प्रकाशित होना हिन्दी ससार के लिए सचमुच ही बड़े सोभाग्य की बात है । परमात्मा इसके लेखक को यश दे।
लक्ष्मीधर वाजपेयी