Book Title: Kasaypahudam Part 13
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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( २५ ) नहीं होता । पुरुषवेद छह नोकषाय, अप्रत्याख्यान क्रोध और प्रत्याख्यान क्रोधका नियमसे क्रोध संज्वलनमें संक्रम होता है अन्यत्र संक्रम नहीं होता। क्रोधसंज्वलन, अप्रत्याख्यान मान
और प्रत्याख्यान मानका नियमसे मानसंज्वलनमें संक्रम होता है, अन्यत्र संक्रम नहीं होता । मानसंज्वलन, अप्रत्याख्यानमाया और प्रत्याख्यान मायाका नियमसे मायासंज्वलनमें संक्रम होता है, अन्यत्र संक्रम नहीं होता । तथा मायासंज्वलन, अप्रत्याख्यान लोभ और प्रत्याख्यान लोभका नियमसे संज्वलन लोभमें संक्रम होता है, अन्यत्र संक्रम नहीं होता । इन प्रकृतियोंका पहले जो आनुपूर्वीके विन। संक्रम होता रहा, वह यहाँसे उक्त विधिसे होने लगता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
(२) उक्त समयसे लेकर लोभ संज्वलनका संक्रम नहीं होता यह दूसरा करण है । पहले इसका आनुपूर्वी के बिना प्रतिलोम विधिसे जो संक्रम होता था वह अब नहीं होता, इसलिए आगे लोभसंज्वलनका संक्रम ही नहीं होता। ,
(३) मोहनीयकर्मका एकस्थानीय बन्ध होता है यह तीसरा करण है। इससे पूर्व मोहनीयका जो द्विस्थानीय बन्ध होता था वह यहाँसे परिणामोंके माहात्म्यवश एकस्थानीय होने लगता है।
( ४ ) यहाँसे लेकर सर्व प्रथम आयुक्तकरण द्वारा नपुंसकवेदके उपशमानेकी क्रियाको करता है। आयुक्तकरण, उद्यतकरण और प्रारम्भकरण ये तीनों एकार्थवाची शब्द हैं । अन्तरकरण क्रिया सम्पन्न करनेके साथ नपुंसकवेदके उपशमानेकी क्रियाका प्रारम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
(५) अन्तरकरणके बाद मोहनीय और मोहनीयके अतिरिक्त अन्य जिन प्रकृतियोंका बन्ध होता है उनकी बन्धसे लेकर छह आवलि काल जानेपर उदीरणा होती है यह पाँचवां करण है । सामान्य नियम यह है कि बन्ध होनेके बाद एक आवलि काल जानेपर बन्धप्रकृत्तिकी उदीरणा होने लगती है। परन्तु अन्तरकरण क्रिया सम्पन्न होनेपर यह नियम यहाँ लागू न होकर बन्ध समयसे लेकर छह आवलि काल जानेपर उदीरणा होती है ऐसा यहाँ समझना चाहिए । इसी तथ्यको कल्पित उदाहरण द्वारा मूलमें स्पष्ट किया गया है।
(६) मोहनीयका एकस्थानीय उदय होता है यह छटा करण है। इससे पूर्व मोहनीयका देशघातिस्वरूप द्विस्थानीय उदय होता था, वह यहाँसे एकस्थानीय होने लगता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
(७) मोहनीयका संख्यात वर्षप्रमाण बन्ध होने लगता है यह सातवाँ करण है। अन्तरकरणक्रिया सम्पन्न करनेके पूर्व जो असंख्यात वर्षप्रमाण बन्ध होता रहा वह अन्तरक्रिया सम्पन्न होनेके समयसे लेकर बहुत घटकर संख्यात वर्षप्रमाण होने लगता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
इस प्रकार उक्त करणोंका प्रारम्भ कर अन्तर्मुहूर्तमें नपुंसकवेदका उपशम करता है । पुनः अन्तर्मुहूर्तमें स्त्रीवेदका उपशम करता है । स्त्रीवेदका उपशम करते समय जब ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तब केवलज्ञानावरण
और केवलदर्शनावरणको छोड़कर उक्त तीनों मूल प्रकृतियोंका एकस्थानीय अनुभागबन्ध होता है । पुनः स्त्रीवेदका उपशम करनेके बाद सात नोकषायोंका उपशम करता है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि जिस समय सात नोकषायोंका उपशम होता है उस समय