Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ कर्मप्रकृतिः प्रकृतिबन्धः [ ३. प्रकृतेः स्वरूपम् ] . तत्र ज्ञानप्रच्छादनाविस्वभावः प्रकृतिः। [ ४. प्रकृतेः विध्यम् ] सा मूल प्रकृतिरुत्तरप्रकृतिरुत्तरोसरप्रकृतिरिति त्रिधा। मूलप्रकृतयः [ ५. मूलप्रकृतेरष्ट भयाः ] तत्र ज्ञानावरणीयं वर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीयमायुष्यं नाम गोत्र. मन्तरायश्चेति मूलप्रकृतिरष्टधा। [ ६. ज्ञानावरणीयस्य लक्षणम् उदाहरणं च ] तत्रात्मनो ज्ञानं विशेषग्रहणमाषणोतीति ज्ञानावरणीयं इलक्षण काण्डपटवत् । ३. प्रकृतिका स्वरूप ज्ञानको ढंकना आदि स्वभाव प्रकृति है । ४. प्रकृतिके भेद वह मूल प्रकृति, उत्तर प्रकृति और उत्तरोत्तर प्रकृति, इस तरह तीन प्रकारको है। ५. मूल प्रकृतिके आठ भेद उनमें ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये आठ मूल प्रकृतिके भेद हैं । ६. ज्ञानावरणीयका लक्षण और उदाहरण उक्त आठ भेदों में पतले रेशमी वस्त्रको तरह जो आत्माके विशेषग्रहण रूप ज्ञानगुण को टैंकता है, वह ज्ञानावरणीय है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88