Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 24
________________ Ans: -11] [ ३८. सम्यक्त्वप्रकृतेः स्वरूपम् ] तत्त्वार्थप्रदानरूपं सम्यग्दर्शनं चलमलिनमगाढं करोति यत्सा सम्यक्त्वप्रकृतिः । [ ३९. चारित्रमोहनीयस्य द्वौ भेदी | कषायनोकषायभवाच्चारित्रमोहनीयं द्विधा। [४०. कपायाणां भेदाः ] तत्रानन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पतः प्रत्येक क्रोधमानमायालोमा इति कषायाः षोडश । [४१. अनन्तानुवन्धिकषायागां कार्यम् ] तत्रानन्तानुबन्धिकोधमानमायालोभाः सम्यग्दर्शनं विराधयन्ति । ३८. सम्यक्त्वप्रकृतिका स्वरूप जो तत्त्वार्थकी श्रद्धारूप सम्यग्दर्शनमें चल, मलिन तथा अगाढ़ दोष उत्पन्न करे, वह सम्यक्त्वप्रकृति है । ३९. चारित्रमोहनीयक भेद कपाय और नोकषाय भेदसे चारित्रमोहनीय दो प्रकारका है। ४०. कषायके भेद उनमें अनन्तानुबन्धि, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलनके विकल्पसे कषाय चार प्रकारको है और प्रत्येकके क्रोध, मान, माया तथा लोभ ये चार-चार भेद हैं। इस प्रकार कषायके सोलह भेद हैं। ४१. अनन्तानुवन्धि कषायोंका कार्य अनन्तानबन्धि, क्रोध, मान, माया और लोभ सम्यग्दर्शनका घात करते हैं-उसे वे प्रकट नहीं होने देते।

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