Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 26
________________ कर्मप्रकृतिः [४६. अप्रत्याख्यानकषायाणां शक्तयः ] अप्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभा यथाक्रमं भूभेदास्यि-अविशृग चक्रमलसदृशास्तीव्रतरशस्तयः । [४७. प्रत्याख्यानकषामाणां शनायः ] प्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोमा यथाक्रम धूलिरेखाकाष्ठगोमूत्रतनुमल सदृशास्तीनशक्तयः । [ ४८. संज्वलनकषायाणां शक्तयः | संज्वलनक्रोधमानमायालोभा यथाक्रमं जलरेखावेत्रक्षुरप्रहरिद्राराग सदृशा मन्दशक्तयः । [४९. हास्यप्रकृतेर्लक्षणम् ] यतो हासो भवति तद्धास्यम् । ४६. अप्रत्याख्यानाबरण कापायोंकी शक्ति अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय क्रमसे पृथ्वीखण्ड, हड्डी, मेके सींग तथा चक्रमल ( ओंगन ) के सदृश तीव्रतर शक्तिवाली होती हैं। ४७. प्रत्याख्यानावरण कपायोंकी शक्ति प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया और लोभ क्रमसे धूलि-रेखा, काष्ठ, गोमूत्र तथा शरीरको मलके समान तीव्रतर शक्तिबाली होती हैं। ४८. संचलन कपायोंवो शक्ति संज्वलाम क्रोध, मान, माया तथा लोभ क्रमसे जलरेखा, बेत, खुरपा तथा हल्दोके रंगके सदृश मन्द शक्तिबाली होतो हैं । ४९. हास्य प्रकृतिका लक्षण जिससे हँसी आथे, वह हास्य प्रकृति है।

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