Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 72
________________ " -211] एवं तृतीयादिसमयेष्वाचरमसमयं विशुद्धिपरिणामा एकैकखण्डं कृताः विशेषाधिकाः सन्ति । अत एव कारणात्पूर्वपूर्व समयोऽप्रवृत्ता एव विशुद्धिपरिणामा उत्तरसमये भवन्तीत्यपूर्वकरण संज्ञा युक्ता । तस्याङ्कसंदृष्टि: - | S कर्मप्रकृतिः K ० V の ព W ० ܡ 7 → mt द्वितीय समयवर्ती परिणाम विशेष अधिक होते हैं ४७२। ये भी एक ही खण्ड हैं। ऊपर और नीचे अधस्त्वके सादृश्यका अभाव होने से बहुत खण्ड नहीं होते । इसी प्रकार तृतीय आदि समयों में चरम समय पर्यन्त विशुद्धि परिणाम एक-एक खण्ड करके ही विशेष अधिक होते हैं। इसी कारण से पूर्व पूर्व समय में नहीं हुए अप्रवृत्त ही विशुद्धि परिणाम उत्तर समयमें होते हैं, इसलिए अपूर्वकरण कहना उचित है। इसकी अंक संदृष्टि ऊपर दी है।

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