Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 35
________________ कमप्रप्तिः [८४. औदारिकारीरबन्धननामकर्मणः लभणम् | तत्रौवारिफशरीराकारेण परिणतपुदगलानां परस्परसंश्लेषरूपो बन्यो यसो भवति तबौधारिकशरीरबन्धननाम । [ ८५. क्रिमकादिशरीरबन्धननामकर्मणां लक्षणानि । एवं वैकियकाहारकतेसकार्मणशरीराकारेण परिणतपुद्गलानां परस्परसंश्लेषरूपी बन्यो यती भवति तानि वक्रियकाहारफतैजसकार्मण शरीरबन्धननामानि मातव्यानि । । ८.६. मंघातनामकर्मणः पश्न भेदाः । औदारिकादिशरीरपत्रकाश्रितानि संघातनामानि पञ्च । ८४. औदारिक मार्गर बन्धन नाम मामका कम जिसके कारण औदारिक शगेरके आकाररूपसे परिणत पुद्गलोंका परस्पर मंश्लेप रूप बन्ध होता है, वह औदारिक शरीर बन्धन नाम कर्म है। ८५. ऐकियक, आहारक, तंजस और कामण गरीर बन्धन नाम कर्म इसी प्रकार जिस कारण वैकियक, आहारक, तेजस और कार्मण शरोरके आकार रूपसे परिणत पद्गलोंका परस्पर संश्लेष रूप वन्ध होता है, उन्हें कामशः वैक्रियक, आहारक, तेजम और कार्मण शरीर बन्धन नाम कर्म कहते हैं। ८६. संघात नाम कमक पांच भंद औदारिक आदि पौत्र शरोरोंके आश्रित संघात नाम कर्म पाँच प्रकारका होता है।

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