Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 42
________________ -११३] कर्मप्रकृतिः [ ११०. रसनामकर्मणः पञ्च भेदाः ] तिक्तकटुकषायाम्लमधुरभेदादसनाम पञ्चधा। [ १११. रसनामकर्मणः लक्षणम् ] तत्तत्त्वस्वशरीराणां यत्स्वस्वरसं करोति तद्रसनाम । [ ११२. लवणो नाम षष्ठो रसः न पृथक् ] लवणो नाम रसो लौकिकैः षष्ठोऽस्ति । स मधुररसभेव एवेति परमा गमे पृथक्त्वा नोगमः, ला लिना इतनमान स्वास्वाभावात् । [ ११३. स्पर्शनामकर्ममाः अष्टभेदाः ] मृदुकर्कशगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षभेवास्पर्शननामाष्टकम् । ११०. रस नामके पाँच भेद तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल तथा मधुरके भेदसे रस नाम कर्मके पाँच भेद हैं। १११. रस नाम कमका सामान्य लक्षण अपने अपने शरीरका जो अपना-अपना रस करता है, उसे रस नाम कर्म कहते हैं। ११२. लवण नामक छठा ररा लवण नामक छठा रस लोकमें माना जाता है। यह मधुर रसका ही भेद है, इसलिए परमागममें अलगसे नहीं कहा, क्योंकि नमकके बिना तो अन्य सभी रस फीके हैं। ११३. स्पर्श नाम कर्मके आट भेद मृदु, कर्कश, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध तथा रूक्षके भेदसे स्पर्श नाम कर्म आठ प्रकारका है।

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