Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 54
________________ -१६५ ] कर्मप्रकृतिः [ १६२. उपभोगान्तरायस्य लक्षणम् ] भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य उपभोगस्तस्य विघ्नहेतुरुप भोमान्तरायम् । [ १६३. वीर्यान्तरायस्य लक्षणम् । वीय शक्तिः सामर्थ्य तस्थ विघ्नहेतुर्वीर्यान्तरायम् । [ १६४, उत्तरप्रकृतिबन्धस्य समातिः ] एवमुत्तरप्रकृतियः कथितः। [ १६५. उत्तरोत्तर प्रकृतिबन्धस्यागोचरत्वम् ] उत्तरोतरप्रकृतिबन्धोऽगोचरो भवति । १६२. उपभोगान्तरायका लक्षण एक बार भोगकर पुनः भोगने योग्य उपभोग कहलाता है, उसके विध्नका कारण उपभोगान्तराय है। १६३. वीर्यान्तरायका लक्षण शक्ति या सामर्थ्य बीर्य है, उसके विघ्नका कारण बोर्यान्त राय है। १६४. उत्तर प्रकृति-वन्धका उपसंहार ___ इस प्रकार उत्तर प्रकृति-बन्ध कहा। १६५. उत्तरोत्तर प्रकृति-बन्ध उत्तरोत्तर प्रकृति-बन्ध अगोचर है । .MA. M YTENT

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