Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 56
________________ कर्मप्रकृतिः -१७४ ] [ १७० दर्शनमोहनी यस्योत्कृष्श स्थितिः ] वनमनस्य सप्ततिः कोटिकोटिसागरोपमप्रमाणा । [ १७१. चारित्र मोहनीयस्योत्कृष्ट स्थितिः | चारित्रमोहनीयस्य चत्वारिंशत्कोटिकोटिसागरोपमप्रमिता । [ १७२. नामगोत्रयोरुत्कृष्टा स्थितिः ] नामगोत्रयोविंशतिकोटिकोटिसागरोपमप्रभात्री । [ १७३. आयुकर्मण: उत्कृष्ट स्थिति आयुष्यकर्मणस्त्रर्यास्त्रशत्सागरोपमप्रमाणा । इत्युत्कृष्ट स्थितिरुक्ता । [ १७४. वेदनीयस्य जधन्यस्थितिः । वेवनीयस्य जघन्यस्थितिर्द्वादशमुहूर्ता । ४३ १७०. दर्शन मोहनीको उत्कृष्ट स्थिति दर्शन मोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटि-कोटि सागर प्रमाण है । १७१. चारित्र मोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति चारित्र मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोटि-कोटि सागर प्रमाण है । १७२. नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटिकोटि सागर प्रमाण है । १७३. आयु कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति आयु कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर प्रमाण है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति कही । १७४. वेदनीय कर्मकी जघन्य स्थिति वेदनीय कर्मको जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है ।

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