Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 60
________________ प्रदेशबन्धः [ १८४. प्रदेशबन्धकमनस्य प्रतिज्ञा ] अथ प्रवेश उच्यते। [ १८५, प्रदेशबन्धस्य लक्षणम् ] आत्मप्रदेशेषुववर्षगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्राणि सिद्धराश्यनन्तकभागप्रमितानामभन्यजीवस्थानन्तगुणानां सर्वकर्मपरमाणून पर स्परप्रदेशानुप्रवेशलभणः प्रदेशबन्धः। [ १८६, प्रदेशबन्धस्योपसंहारः ] इति प्रवेशबन्ध उक्तः। १८४. प्रदेश बन्ध कथनकी प्रतिज्ञा आगे प्रदेशबन्ध कहते हैं। १८५, प्रदेशबन्ध का लक्षण आत्माके प्रदेशों में डेढ़ गुणहानि गणित समयबद्ध मात्रको सत्ता रहती है तथा प्रति समय सिद्धराशिके अनन्तवें भाग प्रमाण या अभव्य जीवोंके अनन्तगुणें समस्त कर्म परमाणुओंका परस्पर प्रदेशों में अनुप्रवेश होना प्रदेशबन्ध है ! १८६. प्रदेशबन्ध वायनका उपसंहार इस प्रकार प्रदेशबन्ध कहा ।

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