Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 65
________________ कमंप्रकृतिः [ 140 १९७. अभव्यानां करणत्रयाभावः ] तेषां कदाचिदपि सम्यग्वर्शनप्राप्तिकारणकरणत्रयविधानासंभवात् । [ १९८. मिथ्यात्वगुणस्थानम् ] तत्र दर्शनमोहनीयस्य मिथ्यात्यप्रकृतेरुदयावतस्य श्रद्धानरूपमिथ्यावर्शनपरिणतस्सर्वज्ञनपाणीतं हरिमानो धान्यप्रणोसमतस्वं श्रद्दधानो वा ओवो निष्यादृष्टिरिति प्रथमगुणस्थानवर्ती भवति । [ १९९ मिध्यादृष्टः सम्यक्त्वस्य विधानम् ] अनाविभिष्यावृष्टिर्षा प्रथमोपशमसम्यक्त्वं गृह्णाति । साविमिध्यादृष्टिर्वा लब्धिपञ्चभिधाने १९७. अभव्योंके करणत्रयका अभाव उनके कभी भी सम्यग्दर्शनको प्राप्तिके कारण करणत्रय होना असंभव है ! १९८. मिथ्यात्व गुणस्थान दर्शन मोहनीयकी मिथ्यात्व प्रकृतिके उदयसे अतत्वश्रद्धान रूप मिथ्यादर्शनसे युक्त, सर्वज्ञ वीतराग प्रणीत जीव आदि तत्वोंका अश्रद्वान करनेवाला अथवा संशय करनेवाला, या अन्य प्रणीत अतत्वों का श्रद्धान करनेवाला जोव मिध्यादृष्टि नामक प्रथम गुणस्थानवर्ती होता है । १९९. मिध्यादृष्टि सम्यक्त्वका विधान अनादि मिथ्यादृष्टि अथवा सादि मिथ्यादृष्टि पाँच लब्धियों के सद्भावमें प्रथमोपशम सम्यक्त्वको ग्रहण करता है ।

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