Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 59
________________ कर्मप्रकृतिः ૐ [ १८३. अनुभागबन्यकथनस्योपसंहारः ] इत्यनुभाग उक्तः । [ १८३ १८२. अघाति कर्मोका अनुभाग अति कर्मोंकी अशुभ प्रकृतियोंका अनुभाग नीम, कांजीर, विष, और हालाहलके समान चार प्रकारका तथा शुभ प्रकृतियोंका अनुभाग गुड़, खाँड, शर्करा तथा अमृत के समान चार प्रकारका है । १८३. अनुभाग बन्ध कथनका उपसंहार इस प्रकार अनुभाग बन्त्र कहा ।

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