Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 58
________________ अनुभागबन्धः [ १७९. अनुभागबन्धकथनस्य प्रतिज्ञा ] अथानुभाग उच्यते । [ १८०. अनुभागबन्धस्य लक्षणम् ] कर्मप्रकृतीना तोत्रमन्दमध्यमशक्ति विशेषोऽनुभागः । [ १८१. घातिकर्मणामनुभागः ] चातिकर्मणामनुभागी लवादास्यर्शलसमानचतुःस्थानः । [ १८२. अपातिकर्मणामनुभागः ] अधातिकर्मणामशुभप्रकृतीनामनुभागो निम्बकाखेर विषहालाहलसदृशचतुः स्थानः, शुभप्रकृतीनामनुभागो गुडखाण्डशर्करामृतसमानचतुःस्थानः । १७९. अनुभाग अन्ध कहने की प्रतिज्ञा अब अनुभाग बन्ध कहते हैं । १८०. अनुभाग वन्धका लक्षण कर्मप्रकृतियोंकी तीव्र, मन्द, मध्यम शक्ति विशेषसे अनुभाग कहा है । १८१. वाति कर्मोंका अनुभाग घाति कमोंका अनुभाग लता, दारु (काष्ठ), अस्थि तथा शिलाके समान चार प्रकार है ।

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