Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 44
________________ -१२२] कर्मप्रकृमिः [ ११९. परवातनामकर्मणः लक्षणम् ] परघातनाम परबाधाकारकं सर्पदंष्ट्रशृङ्गाविशरीरावयवं करोति । [ १२०, तपनामकर्मणः लक्षणम् | आतपनामोष्णप्रभा करोति तत् सूर्य बिम्बे बाबरपर्याप्त पृथ्योकायिके भलि। [ १२१. उद्योतनामकर्मणः लक्षणम् ] उद्योतनाम शीतलप्रभां करोति, तत् चन्द्रतारकादिबिम्बेषु तेजोवायुसाधारणजितचन्द्रतारकादिबिम्बजनितबादरपर्याप्ततिर्यग्जीवेषु भवति। [ १२२. उच्छ्वासनामकर्मण; लमणम् ] उच्छ्वासनाम उच्छ्वासनिःश्वासं करोति । ११९. परघात शरीरका लक्षण परघात नाम कर्म दूसरोंको वाधा देनेवाले मर्पदाढ़, सीम आदि शरीरावयव करता है। १२२. आतप नाम कर्मका लक्षण आतप नाम कर्म उष्ण प्रभा करता है । वह सूर्य बिम्बमें स्थित बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवोंको होता है। १२१. उयोत नाम कर्मका लक्षण उद्योत नाम कर्म शीतल प्रभा करता है । वह चन्द्र, तारागण आदि के बिम्बमें तथा तेजकायिक वायकायिक गाधारणकायिक जीवोंके सिवाय चन्द्रत्तारक आदि विम्बमें होनेवालं वादग्पर्याप्त तिर्यच जीवोंमें होता है। १२२. उच्छ्वास नाम कर्गका लक्षण उच्छ्वास नाम कर्म उच्छ्वास और निःश्वासको करता है।

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