Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ कर्मप्रकृतिः [१२३. विहायोगतिनामकर्मण: दो भेदौ ] विहायोगतिमाम प्रशस्ताप्रशस्तभेदाद द्विधा । [ १२४. प्रशस्तविहायोगतः लक्षणम् ] तत्र प्रशस्तविहायोगतिनाम मनोझं गमनं करोति । [ १२५. अप्रशस्तविहायोगतेः लक्षणम् ] अप्रशस्तविहायोगतिरप्रशस्तगमनं करोति । [ १२६. असनामकर्मणः लक्षणम् ] असनाम द्वीन्द्रियादीनां चलनोद्वैजनावियुक्तं असकायां करोति । [ १२३. स्थायरनामकर्मणः लक्षणम् ] पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावरताम पृथिध्यायकेन्द्रियाणां चलनोटुजनादिरहितस्थावरकामं करोति । १२३. बिहायोगति नाम कमके भेद विहायोगति नाम कर्म प्रशस्त और अप्रशस्तके भेदसे दो प्रकारका है। १२४. प्रशस्त बिहायोगतिका लक्षण प्रशस्त विहायोगति नाम कर्म मनोज्ञ गमन करता है। १२५. अप्रशस्त विहायोगतिका लक्षण अप्रशस्त विहायोगति अप्रशस्त-अमनोज्ञ गमन करता है । १२६. अस नाम कर्मका लक्षण अस नाम कर्म चलन, उद्वेजन आदि युक्त द्वीन्द्रिय आदि रूप त्रसकाय को करता है। १२७. स्थावर नाम कर्मका लक्षण पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति, स्थाबर नाम कर्म पृथ्वी आदि एकेन्द्रियोंके चलन, उद्वेजन आदि रहित स्थावरकायको करता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88