Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 51
________________ 3 ३८ [ १४९. आदेयनामकर्मणः लक्षणम् ] आदेयनाम परेर्मान्यतां करोति । कर्म प्रकृतिः [ १५०. अनादेयनामकर्मणः लक्षणम् ] अनादेयनामामान्यतां करोति । [ १५१. यशस्कीदिनामकर्मणः लक्षणम् ] यशस्कीतिनाम गुणकीर्तनं करोति । [ १५२. अयशस्वीतिनामकर्मणः लक्षणम् } अयशस्को तिनाम दोषकीर्तनं करोति । [ १५३. निर्माणनामकर्मणः लक्षणम् ] निर्माणनाम शरीरवत् स्वस्वस्थानेषु स्वस्थितानुप्राञ्जलियां करोति १४९. आदेय नाम कर्मका लक्षण आदेय नाम कर्म दूसरोंके द्वारा मान्यता करता है । १५०. अनादेय नाम कर्मका लक्षण अनादेय नाम कर्म अमान्यता करता है । १५१. यशस्कीति नाम कर्मका लक्षण यशस्कीर्ति नाम कर्म गुणकीर्तन करता है । [ १४९ १५२. अयदास्कीति नाम कर्मका लक्षण अयशस्कीर्ति दोपकीर्तन ( बदनामों ) करता है । १५३. निर्माण नाम कर्मका लक्षण निर्माण नामकर्म शरीर के अनुसार स्व-स्व स्थानोंमें शरीरावयवोंका उचित निर्माण करता है ।

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