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कर्मप्रकृतिः [ १३६. उच्छ्वासनिश्वासपर्याप्त लक्षणम् ]
आहारवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानुन्छ्वासनिःश्वासरूपेण परिणमयितुं
जोवस्य शक्तिनिष्पत्तिरुच्छ्वासनिःश्वासपर्याप्तिः । [ १३७. मागावला
भाषागणायातपुदगलस्कन्धान्सत्यादिचतुविधवाक्स्वरूपेण परिणम
यितुं जीवस्य शक्तिनिष्पत्तिर्भाषापर्याप्तिः । [ १३८. मनःपर्याप्त भणम् ।
वृष्टश्रुतानुस्मितार्थानां गुणदोषविचारणाविरूपभावमनःपरिणमने मनोवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानां द्रव्यमनोरूपपरिणामेन परिणयितुं
जीवस्य शक्तिनिष्पत्तिमनःपर्याप्तिः । १३६. उच्छ्वास-निश्वास पर्याप्तिका लक्षण
आहार वर्गणा-द्वारा प्राप्त पुद्गल स्कन्धोंको उच्छ्वास-निश्वास रूपसे परिणत करनेके लिए जीवकी शक्ति उत्पन्न होना उच्छ्वास-निश्वास
पर्याप्ति है। १३७. भाषा पर्याप्तिका लक्षण
भाषा वर्गणा-द्वारा प्राप्त पुद्गल स्कन्धोंको सत्य आदि चार प्रकारकी वाक रूपसे परिणत करनेके लिए जीवकी शक्ति उत्पन्न होना
भाषा पर्याप्ति है। १६८. मनःपर्याप्तिका लक्षण
देखे, सुने, तथा अनुमित ( अनुमानसे जाने गये ) अर्थोके गुण-दोष विचारणादि रूप भाव मनके परिणमनमें, मनोवर्गणा रूपसे प्राप्त पुदगल स्क्रन्धोंके द्रव्य मन रूप परिणाम द्वारा परिणत करनेके लिए जोवकी शक्ति उत्पन्न होना मनःपर्याप्ति है।