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________________ -110] कर्मप्रकृतिः [ १३६. उच्छ्वासनिश्वासपर्याप्त लक्षणम् ] आहारवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानुन्छ्वासनिःश्वासरूपेण परिणमयितुं जोवस्य शक्तिनिष्पत्तिरुच्छ्वासनिःश्वासपर्याप्तिः । [ १३७. मागावला भाषागणायातपुदगलस्कन्धान्सत्यादिचतुविधवाक्स्वरूपेण परिणम यितुं जीवस्य शक्तिनिष्पत्तिर्भाषापर्याप्तिः । [ १३८. मनःपर्याप्त भणम् । वृष्टश्रुतानुस्मितार्थानां गुणदोषविचारणाविरूपभावमनःपरिणमने मनोवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानां द्रव्यमनोरूपपरिणामेन परिणयितुं जीवस्य शक्तिनिष्पत्तिमनःपर्याप्तिः । १३६. उच्छ्वास-निश्वास पर्याप्तिका लक्षण आहार वर्गणा-द्वारा प्राप्त पुद्गल स्कन्धोंको उच्छ्वास-निश्वास रूपसे परिणत करनेके लिए जीवकी शक्ति उत्पन्न होना उच्छ्वास-निश्वास पर्याप्ति है। १३७. भाषा पर्याप्तिका लक्षण भाषा वर्गणा-द्वारा प्राप्त पुद्गल स्कन्धोंको सत्य आदि चार प्रकारकी वाक रूपसे परिणत करनेके लिए जीवकी शक्ति उत्पन्न होना भाषा पर्याप्ति है। १६८. मनःपर्याप्तिका लक्षण देखे, सुने, तथा अनुमित ( अनुमानसे जाने गये ) अर्थोके गुण-दोष विचारणादि रूप भाव मनके परिणमनमें, मनोवर्गणा रूपसे प्राप्त पुदगल स्क्रन्धोंके द्रव्य मन रूप परिणाम द्वारा परिणत करनेके लिए जोवकी शक्ति उत्पन्न होना मनःपर्याप्ति है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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