SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ কর্মমভূমি। [१४[ १३३. आहारपशिलक्षणम् ] तन्नाहारवर्गणायासपुद्गलस्कन्धानां खलरसभागरूपेण परिणमने आत्मनः शक्तिनिष्पत्तिराहारपर्यामिः । [ १३४. दारीपर्याप्नलक्षणम् ] खलभागमस्माविकठिनावयवरूपेण, रसभागं रसरुधिराविद्रवावयव रूपेण च परिणमयितुं जीवस्य शक्तिनिष्पत्तिः शरीरपर्याप्तिः । [ १३५. इन्द्रियपर्यामलक्षणम् । स्पर्शनादीन्द्रियाणां योग्यदेशावस्थितस्वस्वविषयपहणे शक्तिनिष्पत्तिरिन्द्रियपर्याप्तिः । १३२. पर्याप्तियोंके छह भेद आहार, शरीर, इन्द्रिय, उच्छ्वास-निश्वास, भाषा और मन ये पर्याप्तिके छह भेद हैं। १३३. आहार पर्याप्तिका लक्षण आहार वर्गणा द्वारा प्राप्त पुद्गल स्कन्धोंका खल और रस भाग रूप परिणमनमें जीवको शक्ति उत्पन्न होना आहार पर्याप्ति है। १३४, शरोगपर्याप्तिका लक्षण खल भागको अस्थि आदि कठिन अवयब रूपसे तथा रस भागको रस, मधिर आदि द्रव अवयव रूपसे परिणत करनेमें जीवको शक्ति उत्पन्न होना शरीर पर्याप्ति है। १३५. इन्द्रिय पर्याप्तिका लक्षण स्पर्शन आदि इन्द्रियोंके योग्य देशमें अवस्थित अपना-अपना विषय ग्रहण करनेमें शक्ति उत्पन्न होना इन्द्रिय पर्याप्ति है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy