Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 36
________________ कर्मप्रकृतिः [ ८७. औदारिकशरीरसंघातनामकर्मणः लक्षणम् । तत्रौदारिफशरीराकारेण परिणतपरस्परबजपुद्गलानां तवाकारवैषम्याभावकारणमौवारिफशरीरसंघातनामकर्म । ::: चैकिंवदगिर रांगामायणा': लक्षणम् । एवं वैक्रियकाहारकतैजसकार्मणशरीररूपेण परिणतपरस्परबद्धपुद्गलस्कन्धानां तत्तवाकारवैषम्याभावकारणानि वैक्रियकाहारकतैजसकामंणशरीरसंघातनामानि ज्ञातव्यानि । । ८९. संस्थाननामकर्मणः पभेदाः । समचतुरस्रन्यग्रोधस्वातिकुब्जबामनहुण्डभेदात्संस्थाननाम घोढा । ८७. औधारिख शरीर मंपात नाम कर्मका लक्षण औदारिक शरीरके आकाररूपसे परिणत परस्पर बद्ध पुद्गलोंके तदाकार वैषम्यके अभावका कारण औदारिक शरीर संघात नाम कम है। ८८. बैंक्रियक, आहारक, तेजस और कामण शरीर, संघात नाम कमका लक्षण इसी प्रकार वैक्रियक, आहारक, तेजस और कार्मण शरीर रूपसे परिणत, परस्पर बन्छ पुद्गल स्कन्धोंके उस-उस आकारकी विषमताके अभावका कारण वैक्रियक, आहारक, तेजस और कार्मण शरीर संघात नाम कर्म है। ८१. संस्थान नाम कमक छह भेद समचतुरन, न्यग्रोध, स्वाति, कुब्ज, वामन और हुण्डक, ये संस्थान नाम कर्मके छह भेद हैं।

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