Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 37
________________ ૨૪ कर्मप्रकृतिः [ १० [ ९०. समचतुरस्रसंस्थानस्य लक्षणम् ] तत्र यतः सर्वत्र दशतालललतिप्रशखत तत्समचतुरस्त्रसंस्थानं नाम । [ ९१. न्यग्रोधसंस्थानस्य लक्षणम् ] यत उपरि विस्तीर्णोऽथः संकुचितशरीराकारो भवति तन्न्यग्रोधसंस्थानं नाम । [ ९२. स्वातिसंस्थानस्य लक्षणम् ] यतोऽधो विस्तीर्ण उपरि संकुचितशरोराकारो भवति तत्स्वातिसंस्थानं नाम | स्वातिर्वल्मीकं तत्सादृश्यात् । [ ९३. कुटजसंस्थानस्य लक्षणम् ] यतो ह्रस्वः शरीराकारो भवति तत्कुब्जसंस्थानं नाम । ९०. रामचतुरस्र संस्थान का लक्षण जिससे सब जगह दशत्ताल लक्षणयुक्त प्रदास्त संस्थान सहित शरीरका आकार होता है, वह समचतुरसू संस्थान है। ९१. न्यग्रोध संस्थानका लक्षण जिसके कारण ऊपर विस्तीर्ण तथा नीचे संकुचित शरीराकार होता है, वह न्यग्रोध संस्थान है । ९२. स्वाति संस्थानका लक्षण जिसके कारण नीचे विस्तीर्ण तथा ऊपर संकुचित शरीरका आकार होता है, वह वल्मीक ( वांमी) सदृश होनेके कारण स्वातिसंस्थान कहलाता है । ९३. कुब्जक संस्थानका लक्षण जिसके कारण शरीरका आकार छोटा ( कुबड़ा ) होता है, वह कुब्जक संस्थान नाम कर्म है ।

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