Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 39
________________ २६ कर्मप्रकृति: [96 1 १८. वैक्रियकाहारकारी लक्षणे | एवं वैक्रियकाहारकशरीरयोरपि तबङ्गोपाङ्गकारकं वैक्रियकाहारकशरीराङ्गोपाङ्गनामद्वयं ज्ञातव्यम् । [ ९१. संहनन नामकर्मण: पड भेदाः | वज्ञवृषभनाराचसंहनन वज्रनाराचनारावार्धनाराचकीलितासंप्राप्तसृपाटिकाभेदतः संहननं नाम षोढा । | १०० वज्रवृधमनाराचसंहननस्य लक्षणम् | तत्र वज्रवत् स्थिरास्थिऋषभो वेष्टनं वज्रवत् वेष्टनकीलकबन्धो यतो भवति तद्वज्ञवृषभनाराचसंहननं नाम । ९३. औदारिक शरीर अंगोपांगका लक्षण ओदारिक शरीरके दो पैर दो हाथ, नितम्ब, पीठ, वक्षस्थल तथा शीर्ष ये आठ अंग और अंगुली, कर्ण, नासिका आदि उपांग जिसके कारण होते हैं, उसे औदारिक शरीर अंगोपांग कहते हैं । ९८. वैक्रियक तथा आहारक शरीर अंगोपांगका लक्षण इसी तरह जिनके कारण बेकियक तथा आहारक शरीर के अंगोपांग होते हैं, उन्हें क्रमश: वैकियक तथा आहारक शरीर अंगोपांग कहते हैं । ९९. संहनन नाम कर्म के भेद वज्रवृषभनाराच संहनन, वज्रनाराच संह्नन, नाराचसंहनन, अर्धनाराचसंहनन, कीलित संहनन तथा असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, ये संहनन नाम कर्मके छह भेद हैं । १००. बज्रवृषभनाराच संहननका लक्षण जिसके कारण वज्रकी तरह स्थिर अस्थि और वृषभ वेष्टन तथा वस्त्रकी तरह वेष्टन और कीलक बन्ध होता है, उसे वज्रवृषभनाराच संहनन कहते हैं ।

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