Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 34
________________ -४३] कमप्रकृतिः [ ८०. आहारकशरीरनामकर्मण: लक्षणम् । मत आहारवर्गणायाताः पुद्गलस्कन्धा आहारकशरीररूपेण परिणमन्ति तवाहारकवारीरनाम। [८१. तेजसशरोरनामकर्मणः लक्षणम् । यतस्तैजसवर्गणायाताः पुद्गलस्कन्धास्तैजसशरीररूपेण परिणमन्ति तत्तैजसशरीरनाम। [ ८२. कार्मणशरीरनामकमाणः लक्षणम् । कार्मणवर्गणायाताः पुद्गलस्कन्धाः कार्मणशरीररूपेण परिणमन्ति यतस्तत्कार्मणशरीरनाम । [ ८३. बन्धननामकर्मणः पञ्च भेदाः । औदारिकाविशारीरपञ्चकाश्रितं अन्धननाम पञ्चधा । ८०. आहारत भारीर नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण आहार वर्गणा-द्वारा आये हुए पुद्गल स्कन्ध आहारक शरीर रूपसे परिणत होते हैं, उसे आहारक शरीर नाम कर्म कहते हैं। ८१. तैजस शरीर नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण तैजस वर्गणा-द्वारा आये हुए पुद्गल स्कन्ध तेजस शरीर रूपसे परिणत होते हैं, वह तैजस शरीर नाम कर्म है। ८२. कार्मण शरीर नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण कार्मण धर्गणा-द्वारा आये हुए पुद्गल स्कन्ध कार्मण शरीर रूप परिणत होते हैं, वह कार्मण शरीर नाम कर्म है। ८३. बन्धन नाम कर्गके पाँच भेद औदारिक आदि पाँच शरीरों के आश्रित बन्धन नाम कम पांच प्रकारका है।

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