Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ = -७५] कमप्रकृतिः [ ७२. एकेन्द्रियजातिनामकर्मणाः लक्षणम् ] तत्र स्पर्शनेन्द्रियवन्तो जीवा भवन्ति यतः सा एकेन्द्रियजातिः । [ ७३ जना कर्म] यतः स्पर्शनरसनेन्द्रियवन्तो ओवा भवन्ति सा द्वीन्द्रियजातिः । १९ [ ७४. श्रीन्द्रियजातिनामकर्मणः रुाणम् ] यतः स्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियवन्तो जीवा भवन्ति सा श्रीन्द्रियजातिः । [ ७५. चतुरिन्द्रियजातिनामकर्मणः लक्षणम् ] यतः स्पर्शनरसनप्राणचक्षुष्मन्तो जोवा भवन्ति सा चतुरिन्द्रियजातिः । ७२. एकेन्द्रिय जाति नामकर्मका लक्षण जिसके कारण जीव केवल स्पर्शन इन्द्रियवान् होता है, वह एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म है । १७३. द्रीन्द्रिय जाति नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण जीव केवल स्पर्शन और रसना इन्द्रिय युक्त होता है, वह दीन्द्रिय जाति नाम कर्म है। ७४. श्रीन्द्रिय जाति नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण जीव स्पर्शन, रसना तथा घ्राण इन्द्रिय युक्त होता है, वह त्रीन्द्रिय जाति नाम कर्म है । ७५. चतुरिन्द्रिय जाति नाम कर्मका लक्षण जिसके कारण जीव स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु युक्त होता है, वह चतुरिन्द्रिय जाति नाम कर्म है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88