Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ -१६ ] कप्रषिः बादरसूक्ष्मपर्याप्तप्रत्येकशरीरसाधारणशरीर स्थिरास्थिरशुभाशुभसुभगदुभंग सुस्वरदुःस्वरादेयानादेययशस्कीर्त्य यशस्कोर्तिनिर्माणतीर्थंकर स्वानीतिपिण्डापिण्डरूपा नामकर्मप्रकृतयो द्वाचत्वारिंशत् । [ ६४. नामकर्मणः पिण्डप्रकृतीनां प्रयोनवतिः भेदाः ] पिण्डप्रकृतीनां भेदे तु सर्वा नामप्रकृतयस्त्रयोनवतिः । [ ६५ गतिनामकर्मणः चत्वारः भेदाः ] नारकतियंङ मनुष्यदेवगतिभेदाद गतिनाम चतुर्धा । ६६. नरकगतेक्षणम् ] यतो जीवस्य नारकपर्यायो भवति सा नरकगतिः । 1 आतप उद्योत उच्छ्वास, त्रस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुभंग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यशस्कीर्ति, अयशस्कीति निर्माण तथा तीर्थंकरत्व ये नामकर्मकी पिण्ड-अपिण्डरूप बयालीस प्रकृतियाँ हैं । 1 १७ ६४. नाम कर्मकी तिरानवे प्रकृतियाँ पिण्डप्रकृतियों के भेद करनेपर नामकर्मकी सब प्रकृतियां तिरानबे होती हैं । ६५. गति नाम कर्मके चार भेद नरकगति तिर्यग्गति, मनुष्यगति और देवगतिके भेदसे गति नाम 2 कर्मके चार भेद हैं । ६६. नरकगतिका लक्षण जिसके कारण जीवकी नारकपर्याय होती है, वह नरकगति है । २

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88