Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ मप्रकृतिः [५९[५९. नरकायुषो लक्षणम् ] सत्र यमारकारोरे मात्मानं धारयति तनारकापुष्यम् । [६०. तिर्यगायुपो लक्षणम् | यत्तिर्यक्छरोरे जीवं धारयति तत्तिसग यष्यम् । [ ५१. मनुप्मायूषो लक्षणम् । यन्मनुष्यशरोरे प्राणिनं धारयति सन्मनुष्यापुष्यम् । [ ६२, देवायुषो लक्षणम् ] यद्देवशरीरे बेहिनं धारयति लद्देवायुष्यम् । नाम [६३. नामकर्मणः वाचत्वारिंशत्प्रकृतमः ] गतिजातिशरीरबन्धनसंघालसंस्थानाङ्गोपाङ्गसंहनामवर्णगम्बरसस्पर्शा नुपूर्यगुरुलधूपघातपरघातातपोद्योतोच्छ्वासविहायोगतित्रसस्थावर५९. नरकायुष्यका लक्षण जो आत्माको नारक शरीरमें धारण कराता है, वह नरकायुष्य है। ६०. तियंगायुप्यका लक्षण जो जोचको तिर्वच-शरीरमें धारण कराता है, वह तिर्यगायुष्य है। ६१. मनुष्यायुज्यका लक्षण जो प्राणीको मनुष्य-गरीरमें धारण कराता है, वह मनुष्यायुष्य है। ६२. देवायुप्यका लक्षण जो प्राणीको देव-गरीरमें धारण कराता है, वह देवायुष्य है। ६३. नामकर्मकी बयालीस प्रकृतियां गति, जाति, दारीर, बन्धन, रांधात, संस्थान, अंगोपांग, संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, आनुपूर्वि, अगुरुलघु, जपघात, परधात,

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88