Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 27
________________ १४ [ ५०. रतिप्रकृतेर्लक्षणम् यतो रमयति सा रतिः । [ ५१. अतिप्रकृतम् । यतो विषण्णो भवति सारतिः । [ ५२. शोकप्रकृतेर्लक्षणम् ] यतः शोचयति रोदयति स शोकः । [ ५३. भयप्रकृतेर्लक्षणम् 1 यतो विभेत्यनर्यात्तदुभयम् । [ ५४. जुगुप्साप्रकृतेर्लक्षणम् । यतो जुगुप्सा सा जुगुप्सा । कर्मप्रकृतिः ५०. रतिका लक्षण जिसके कारण रमे ( प्रसन्न हो ), वह रति है । ५१. अरतिका लक्षण जिसके कारण विषण्ण हो, वह अरति है। 31 ५२. गोकका लक्षण जिसके कारण शोक करे, वह शोक है । ५३. भयका लक्षण जिसके कारण अनर्थसे डरे, वह भय है । ५४. जुगुप्साका लक्षण जिसके कारण घृणा आये, वह जुगुप्सा है । [40

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