Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 28
________________ कर्मप्रकृतिः -५८ ] [ ५५. स्त्रीवेदस्य लक्षणम् ] यतः स्त्रियमात्मानं मन्यमानः पुरुषे वेदयति रन्तुमिच्छति सः स्त्रीवेदः । १५ [ ५६. पुत्रेदस्य लक्षणम् ] यतः पुमांसमात्मानं मन्यमानः स्त्रियां वेदप्रति रतुमिच्छति सः पुत्रेदः । [ ५७. नपुंसकवेदस्य लक्षणम् ] यतो नपुंसकमात्मानं मन्यमानः स्त्रीपुंसोदर्यात रन्तुमिच्छति स नपुंसक वेदः । आयुः [ ५८. आयुष्कर्मण: चत्वारः प्रकृतयः ] नाकापुण्यंतियंायुष्यं मनुष्यायुध्वं वेदाजु यातुविधम् । ५५. स्त्रीवेद्रका लक्षण जिसके कारण अपनेको स्त्रो मानता हुआ पुरुषमें रमण करनेकी इच्छा करता है, वह स्त्री वेद है । ९६. वेदका लक्षण जिसके कारण अपनेको पुरुष मानता हुआ स्त्री में रमण करनेकी इच्छा करता है, वह पुंवेद है । ५७. नपुंसक वेद का लक्षण जिसके कारण अपनेको नपुंसक मानता हुआ स्त्री और पुरुष दोनोंमें रमण करने की इच्छा करता है, वह नपुंसकवेद है । ५८. आयुकर्म के चार भेद नारकायुष्य, तिर्यगायुष्य, मनुष्यायुष्य और देवायुष्य इस प्रकार आयुकं चार भेद हैं।

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