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फर्मप्रकृतिः
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७६. पश्चेन्द्रियजातिनामकर्मीगः लक्षणम् 1 पतः स्पर्धानरसनधाणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियवन्तो जीवा भवन्ति सा पक्रन्द्रिय
जातिः। [ ७७. शरीरनामकर्मणः पञ्च भेवाः ]
औवारिक क्रिपकाहारकतैजसकामणानीति शरीरनाम पञ्चधा। [ ७८, औदारिकशरीरनामफर्मणः लक्षणम् !
तत्र यस आहारवर्गणायाताः पुद्गलस्कन्धा मौवारिकशरीरकरणे परि
णमन्ति तोचारिकशरीरनाम। [ ७९. वैक्रियकशरीरनामकर्मण: लक्षणम् ]
यत आहारवर्गणायाताः पुदगलस्कन्धा वैशियकारीररूपेण परिणमन्ति । तक्रियकशरीरनाम।
३६. गन्द्रियजानि नामकर्गका लक्षण
जिसके कारण जोन स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु तथा श्रोत्रेन्द्रिय युक्त
होना है, वह पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म है। ७.३. शरीर गाम कर्मक गान भेद
औदारिक, वैक्रियक, आहारक, लजम और कार्मण, ये शरीर नाम कर्मके पाँच भेद हैं। ७८. औदारिक शरीर नाम कर्मका लक्षण
जिसके कारण आहार वर्गणा-द्वारा आये हुए पुद्गल स्कन्ध औदारिक शरीरके रूपमें परिणत होते हैं, वह औदारिक शरीर नाम
कर्म है। ७९. पैकियक शरीर नाम कर्मका लक्षण
जिसके कारण आहार वर्गणा-वारा आये हुए पुद्गल स्कन्ध वैकिया शरीरके रूपमें परिणत होते हैं, वह वैक्रियक शरीर नाम कर्म है ।