Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 23
________________ १० [ ३४. मोहनीयरम हो भेदो ] दर्शन मोहनीयं चरित्रमोहनीयं चेति मोहनीयं द्विधा । कर्मप्रकृतिः मोहनीयम् [ ३६. मिथ्यात्वस्य स्वरूपम् ] [ ३५. दर्शनमोहनीयस्य त्रयः भेदाः ] ar मिथ्यात्वं सभ्य मिथ्यात्वं सम्यवश्वप्रकृतिश्चेति दर्शनमोहनीयं त्रिधा । तत्रातत्त्वश्रद्धान कारणं मिथ्यात्वम् । [ ३७. सम्यग्मिथ्यात्वस्य स्वरूपम् ] तत्त्वातत्त्वश्रद्धानकारणं सम्यमिध्यात्वम् । ८३४. मोहनीयके दो भेद [ ३४- दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीय, ये दो मोहनीयके भेद हैं । ३५. दर्शनमोहनीयके तीन भेद उनमें मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्व प्रकृति, ये तीन दर्शन मोहनीयके भेद हैं । ३६. मिथ्यात्वका स्त्ररूप उक्त तीन भेदों में मिध्यात्व वह है, जिससे तत्त्वकी श्रद्धा न होकर विपरीत श्रद्धा हो । ३७. सम्यग्मिथ्यात्वा स्वरूप जिससे तत्त्व तथा अतत्त्व दोनोंका श्रद्धान हो वह सम्यग्मिथ्यात्व है ।

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