Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 19
________________ कर्मप्रकृतिः [१९[ १९. मनःगर्यनज्ञानावरणीयस्य स्वरूपम् ] परेषां मनसि वर्तमानमर्थ यज्जानाति तन्मनःपयंयज्ञानं तवाणो तीति मनःपर्ययज्ञानावरणीयम् । [ २०. केवलज्ञानादरणीयस्य स्वरूपम् ] इन्द्रियाणि प्रकाशं मनश्चापेक्ष्य त्रिकालगोधरलोकसफलपदार्थानां युगपवधभासनं केवलज्ञानं तदावृणोतीति केवलज्ञानावरणीयम् । दर्शनावरणीयम् [ २१. दर्शनावरणीयस्य नव प्रकृतयः ] चक्षुर्दर्शनावरणीयमचक्षुर्दर्शनावरणीयमधिदर्शनावरणीयं केवलवर्शनावरणीयं निद्रा निवानिद्रा प्रचला प्रचलाप्रचला स्त्यानद्धिरिति दर्शनावरणीपं नवधा। १९. मनःपर्ययज्ञानाबरणीयका स्वरूप दूसरोंके मनमें स्थित अर्थको जो जानता है, वह मनःपर्ययज्ञान है, उसे जो रोकता है, वह मनःपर्ययज्ञानाबरणीय है। २०. केवलज्ञानावरणीयका स्वरूप इन्द्रिय, प्रकाश और मनकी सहायताके बिना त्रिकाल गोचर लोक तथा अलोकके समस्त पदार्थोंका एक साथ अबभास ( ज्ञान ) केवल ज्ञान है, उसे जो आवृत करता है, वह केवलज्ञानावरणीय है। २१. दर्शनावरणीयक नब भेद चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला तथा स्त्यानगृद्धि ये नौ दर्शनावरणीयके भेद है।

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